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एक्सट्रीम कंडीशन में जरुरी है तुरंत एंडोस्कोपी करना
बच्चों ने देखी लाइव सर्जरी
इंदौर. चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के 39वे स्थापना दिवस समारोह के अंतिम दिन शहर के 7 स्कूलों के 250 बायो स्टूडेंट्स ने 103 किलों वजनी 37 वर्षीय महिला की एंडोस्कोपी प्रोसेस लाइव देखी. इसमें वजन कम करने के लिए महिला के पेट में एंडोस्कोपी के जरिए बलून डाला गया. यह प्रोसेस की गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट डॉ अजय जैन ने.
प्रोसेस के बाद उन्होंने डॉ शोहिनी सर्कार और डॉ संदीप के. के साथ बच्चों के सवालों के जवाब भी दिए. इस दौरान बच्चों को कई रोचक जानकारियां भी दी गई.
डॉ जैन ने बच्चों को बताया कि मोटापा कम करने के लिए सिर्फ डाइट काफी नहीं इसके साथ एक्सरसाइज भी जरुरी है तभी आप प्रॉपर फिटनेस हासिल कर पाएंगे. उन्होंने बताया कि वैसे तो एंडोस्कोपी की प्रक्रिया तत्काल करने की जरुरत नहीं होती पर बच्चों द्वारा सिक्का या ऐसी कोई फॉरेन बॉडी निगल लेने पर, किसी नस फटने, खून की उल्टी होने या मछली का काटा फसने पर तुरंत एंडोस्कोपी करनी पड़ती है.
डेप्युटी डायरेक्टर डॉ अमित भट्ट ने बताया कि इस पांच दिनी कार्यक्रम के तरह शहर के विभिन्न स्कूलों के ढेर हजार से अधिक बच्चों ने ना सिर्फ अलग-अलग तरह की सर्जरी लाइव देखी बल्कि उन बीमारियों व उनके निदान के बारे में भी जानकारी हासिल की.
सलमान खान भी पीडि़त है इस रेयर डिसीज से
कार्यक्रम के दौरान ट्राइजेनिनल न्यूरोलॉजिया नामक बीमारी से पीडि़त 43 वर्षीय केशर सिंह नकुम ने अपनी आपबीती सुनाई. उन्होंने कहा कि तीन साल तो इसके डाइग्नोसिस में ही लग गए. इलाज के बावजूद हर 2-3 महीनों में तेज़ दर्द उठता. मुझे साल भर हर मौसम में दिन-रात मंकी केप पहनकर रहना पड़ता था. धूप निकलने के बाद ही मैं घर से निकल सकता था.
इस बीमारी के कारण मेरी नौकरी तक जाने की नौबत आ गई थी. 2013 में मेरा रेडियो फ्रीक्वेंसी एविलेशन ट्रीटमेंट शुरू हुआ, जिसके बाद ही मैं सामान्य जीवन जी पा रहा हूँ. इस बीमारी के बारे में अधिक जानकारी देते हुए पैन मैनेजमेंट एक्सपर्ट डॉ प्रवेश पाखेड़ बताते हैं कि दिमाग और चहरे से जुडी तीन नसों में करंट लगने की तरह असहनीय दर्द होता है. यह दर्द इतना तेज़ होता है कि कई मरीज इससे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या तक कर लेते हैं.
इस कारण इस बीमारी को सुसाइडल डिसीज भी कहते हैं. यह बीमारी फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी है, वे इसका विदेश में इलाज करा रहे हैं। इसमें 70 प्रतिशत मरीजों को दवा से फायदा हो जाता है पर दवा का असर ना होने पर सर्जरी या रेडियो फ्रीक्वेंसी एविलेशन ट्रीटमेंट की जरुरत होती है.